राधे राधे

आज की “ब्रज रस धारा”

दिनांक 06/11/2018
दिनांक 06/11/2018
जन्म -पदमावतीनदी के किनारे पर खेतरी नामकी एक छोटी सी राजधानी है उसी राज्य में स्वामी श्री कृष्णा नंद दत्त मजुमदार के यहाँ नारायणी देवी के गर्भ से ठाकुर नरोत्तमदास जी का जन्महुआ.ये बाल्यकाल से ही विरक्त थे,
घर में अतुल्य ऐश्वर्य था सभी प्रकार के संसारी सुख थे,किन्तु इन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था.ये वैष्णवो से श्री गौरांग की लीलाओ का श्रवण किया करते थे.
श्री रूप सनातन और रघुनाथ दास जी के वैराग्य और त्याग की कथाएँ सुन सुनकर इनका मन भी राज्य परिवार और धन सम्पति से एकदम फिर गया.लोकनाथ जी सेदीक्षा लेनाश्री गौरांग महाप्रभु और उनके बहुत से पार्षद संसार का परित्याग कर चुके थे,उस समय नरोत्तम बालक थे
इन्हें समझ नहीं आ रहा था कहाँ जाए.एक दिन महाप्रभु ने स्वप्न के आदेश किया – कितुम वृंदावन चले जाओ! और लोकनाथ गोस्वामी के शिष्य बन जाओ,छिपकर वृंदावन चले गए और सारी बातजीव गोस्वामी जी को बताई,वे बोले -लोकनाथ गोस्वामी किसीको भी अपना शिष्य नहीं बनाते.
लोकनाथ और भूगर्भ गोस्वामी दोनों ही महाप्रभु के संन्यास लेने से पूर्व ही उनकी आज्ञा से वृंदावन में आकर चीरघाट पर एक कुंजकुटीर बनाकर भजन करते थे,लोकनाथ जी का वैराग्य भी बड़ा अलौकिक था, वे कभी किसी से व्यर्थ बात नहीं करते प्राय:मौन ही रहते थे,
एकान्त स्थान में चुपचाप भजन करते रहते स्वतः ही जो थोडा बहुत प्राप्त हो गया उसे पा लिया नहीं तो भूखे ही पड़े रहते, शिष्य न बनाने का कठोर नियम कर रखा था.
अब जीव गोस्वामी इन्हें लोकनाथजी के पास ले गए और वैराग्य के बारे में बताया और दीक्षा देने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया.परन्तु नरोत्तम ठाकुरजी भी सच्ची श्रद्धा लेकर आये थे.रोज प्रातः लोकनाथ जी यमुना जी में स्नान को जाया करते और दिनभर कुंज कुटीर में भजन करते अब दास ठाकुर जी उनकी छिपकर सेवा करने लगे,जहाँ वे शौच जाते उनकी शौच को उठाकर फेक आते,जिस कंकरीले पथरीले मार्ग से वे यमुना स्नान को जाते उसे साफ कर देते,
उन्हें हाथ धोने के लिए नरम मिट्टी लाकर रख देते.अर्थात जो भी सुख उन्हें सुझता वे कर देते,जब ये सारी बाते लोकनाथ जी को पता चलि तो उनका ह्रदय भर आया और उन्होंने मंत्र दीक्षा दे दी.राधा रानी जीकी मानसी सेवाएक दिन कुंज में मानसी सेवा में चिंतन मगन थे स्वयं श्री जी प्रकट हुई,नरोत्तम मूर्छित हो गए प्रिया जी ने कहा- नरोत्तम! ऐसे काम नहीं चलेगा,
तुमनियमित रूप सेकुछ पक्की सेवा करो,देखो मध्यान में मेरे श्यामसुंदर कोरबड़ी बनाकर मुझे दिया करो,मै उसे अपने श्यामसुंदर कोपवाऊँगी.मेरी सेवा आज भी मेरी एक सखी”चम्पकलता”करतीहै तुम उसके आनुगत्य में यह सेवा करो, अतः तुम्हारा नाम”चम्पक मंजरी”होगा.
(राधारानी जी निज सेवा में जो सखी होती है और उस सखी के अनुगत जो सखी सेवा करती है उसे ‘मंजरी’ कहते है और जिस सखी के अनुगत सखी कार्य करती है उसी के नाम के साथ उसका नाम आता है)इस प्रसंग के साथ श्री नरोत्तम चेतन हुए और आनंद से सराबोर ये श्री गुरुदेव के पास गए और वृत्तान्त उन्हें सुनाया उन्होंने अनुमति दे दी अब ये रबड़ी सेवा करने लगे.
यहाँ सिद्धान्त ये है कि स्वयं ठाकुर जो द्वारा कोई सेवा या सौभाग्य प्राप्त हो तो उसे श्री गुरुदेव से स्वीकृत करना उनका आनुगत्य प्राप्त करना उनकी कृपा प्राप्त करना आवश्यक है.एक दिन आप मानसी सेवा में दूध औट रहे थे, ध्यान प्रिया-प्रियतम की लीला माधुरी में था, दूध उफन गया और फ़ैल कर इनके हाथ पर आ पड़ा, आप चौकन्ने हुए, देखते है तो वास्तव में हाथ पर फफोले पड़ गए, उनकी चिकित्सा कराई,
इसी अवस्थाको”सिद्ध अवस्था”कहते है कि घटना घटे मानसिक सेवा में और प्रभाव दिखे भौतिक शरीर पर.(अर्थात वहाँ न तो कड़ाही है, न दूध है, न आग है, फिर भी सेवा हो रही है, इसे मानसिक सेवा कहते है)जब शरीर दुग्धमय हो गयासमय आने पर आपने शरीर छोड़ दिया कुछ निंदक उलटी सीधी बातकरने लगे इनके शिष्य गंगानारायण ने करूण क्रंदन किया औरप्रार्थना की कि गुरुदेव !
इनका उद्धार कैसे होगा आप कम से कम इन निंदको का उद्धार तो कर जाते,देखते ही शरीर में स्पंदन हुआ और पुन:उठ बैठे और उन निंदको को हरि नाम का उपदेश देकर वैष्णव बनाया.अंतिम समय आने पर आपने एक दिन गंगा स्नान की इच्छा प्रकटकी संकीर्तन सहित आपको आपके शिष्य गंगा तट पर लाये,तट परबैठकर आपको नहलाया गया आपके दोनों शिष्य आपके शरीर को धीरे धीरे मल मल कर धोने लगे और सबके देखते देखते शरीर घुल-घलकर दूध निकल कर गंगा में मिलने लगा और अगले ही क्षण गंगा की लहर आई और वहाँ दूध ही दूध हो गया शरीर का कुछ पता नहीं चला अर्थात शरीर दुग्ध मय होकर गंगा जी मेंमिल गया.
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JAI SHREE RADHE
JAI SHREE KRISHNA