🌹🌹जय श्री
राधे🌹🌹
दिल की बात
🌹🌹
आज कल एक
फैशन सा हो
गया है वृंदावन
जाना हर कोई
कहता है भैया
हम हर महीने
जाते है भैया
हम हर दो
महीने मे जाते
है और उनसे
पुछो आपने क्या
देखा वृंदावन मे
तब उनका जवाब
होता है सब
कुछ जैसे सारे
स्थानो के नाम
तोते की तरह
रट रखे हो
उनसे पुछो कैसा
लगा वृंदावन तो
उनका जवाब होता
है भैया भीड़
बहुत है गंदगी
बहुत है लुट
खसुट बहुत है
पर लस्सी टिक्की
बहुत अच्छी मिलती
है
तब दिल बहुत
दुखता है अरे
भाई बिहारी
जी के मोटे
मोटे चंचल नैन
तुम्हे नहीं दिखते
सवा कुंज का
आलोकिक आनंद नही
दिखता
निधिवन की रस
वर्षा नहीं दिखती
तटिया स्थान की आलोकिक
शांति नही दिखती
अरे किसी संत
किसी रसिक के
पास कुछ पल
को बैठो तो
सही जरा ब्रज
रज को चखो
तो सही स्नेह
से किशोरी जी
की तरफ तको
तो सही कुछ
पल को ही
सही बृजवासी बनो
तो सही
बस खाली के
खाली ही रेस
लगाने मे लगे
हुए है ।
वृन्दावन धाम की
महिमा! विश्व
के सभी स्थानों
में श्री धाम
वृन्दावन का सर्वोच्च
स्थान माना गया
है। वृन्दावन का
आध्यात्म अर्थ है-
"वृन्दाया तुलस्या वनं वृन्दावनं"
तुलसी का विषेश
वन होने के
कारण इसे वृन्दावन
कहते हैं।
वृन्दावन ब्रज का
हृदय है जहाँ
प्रिया-प्रियतम ने अपनी
दिव्य लीलायें की
हैं। इस दिव्य
भूमि की महिमा
बड़े-बड़े तपस्वी
भी नहीं समझ
पाते। ब्रह्मा जी
का ज्ञान भी
यहाँ के प्रेम
के आगे फ़ीका
पड़ जाता है।
वृन्दावन रसिकों की राजधानी
है यहाँ के
राजा श्यामसुन्दर और
महारानी श्री राधिका
जी हैं। इसमें
तनिक भी सन्देह
नहीं है कि
वृन्दावन का कण-कण रसमय
है।
सभी धामों से ऊपर
है ब्रज धाम
और सभी तीर्थों
से श्रेष्ठ है
श्री वृन्दावन।
इसकी महिमा का बखान
करता एक प्रसंग--
भगवान नारायण ने प्रयाग
को तीर्थों का
राजा बना दिया।
अतः सभी तीर्थ
प्रयागराज को कर
देने आते थे।
एक बार नारद
जी ने प्रयागराज
से पूँछा-
क्या वृन्दावन भी आपको
कर देने आता
है?" तीर्थराज ने नकारात्मक
उत्तर दिया। तो
नारद जी बोले-"फ़िर आप
तीर्थराज कैसे हुए।"
इस बात से
दुखी होकर तीर्थराज भगवान
के पास पहुँचे।
भगवान ने प्रयागराज
के आने का
कारण पूँछा। तीर्थराज
बोले-"प्रभु! आपने मुझे
सभी तीर्थों का
राजा बनाया है।
सभी तीर्थ मुझे
कर देने आते
हैं, लेकिन श्री
वृन्दावन कभी कर
देने नहीं आये।
अतः मेरा तीर्थराज
होना अनुचित है।
"भगवान
ने प्रयागराज से
कहा-
"तीर्थराज!
मैंने तुम्हें सभी
तीर्थों का राजा
बनाया है। अपने
निज गृह का
नहीं। वृन्दावन मेरा
घर है। यह
मेरी प्रिया श्री
किशोरी जी की
विहार स्थली है।
वहाँ की अधिपति
तो वे ही
हैं। मैं भी
सदा वहीं निवास
करता हूँ। वह
तो आप से
भी ऊपर है।
एक बार
अयोध्या जाओ, दो
बार द्वारिका
तीन बार जाके
त्रिवेणी में नहाओगे।
चार बार चित्रकूट,नौ बार
नासिक,बार-बार
जाके बद्रिनाथ घूम
आओगे॥
कोई भी अनुभव
कर सकता है
कि वृन्दावन की
सीमा में प्रवेश
करते ही एक
अदृश्य भाव, एक
अदृश्य शक्ति हृदय स्थल
के अन्दर प्रवेश
करती है और
वृन्दावन की परिधि
छोड़ते ही यह
दूर हो जाती
है।
इसमें जो वास
करता है, भगवान
की गोदी में
ही वास करता
है। परन्तु, श्री
राधारानी की कृपा
से ही यह
गोदी प्राप्त होती
है।
"कृपयति
यदि राधा बाधिता
शेष बाधा"🌺
वृहद्गौतमीयतन्त्र
में भगवान ने
अपने श्रीमुख से
यहाँ तक कहा
है कि यह
रमणीय वृन्दावन मेरा
गोलोक धाम ही
है-
"इदं वृन्दावनं रम्यं मम
धामैव केवलम"🌺
तो व्रज की
महारानी श्री राधारानी
हम पर ऐसी
कृपा करें कि
हमें श्रीवृन्दावन धाम
का वास मिले।
श्रीवृन्दावन धाम मे
वास प्राप्त करने
के लिए सदैव
सतत जपिए - ..जय
जय श्री राधेकृष्णा
जी।
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