अगरबत्ती का प्रयोग

अगरबत्ती का प्रयोग


हिन्दू धर्म में देवी-देवतायों की पूजा के लिए प्राचीन काल से ही धूप-दीप जलाये जाते हैं | लेकिन आजकल लोग धूप के स्थान पर अगरबत्ती का प्रयोग करने लगे हैं जो सही नही है |

आजकल धूप के स्थान पर अगरबत्ती का प्रयोग पूजा में खूब किया जाता है | लेकिन हम आपको बता दें अगरबत्ती में बांस की सींक का प्रयोग किया जाता है और शास्त्रों में बांस को जलना निषेध बताया गया है | ऐसे में अगरबत्ती जलाकर की गयी देवी-देवताओं की पूजा शुभ फल नही देती | माना जाता है की अगरबत्ती जलाने से पितृ दोष लगता है और यही कारण है की आज के समय में अधिकांश लोग किसी न किसी कारण परेशान रहते है |शास्त्रों में कहीं भी अगरबत्ती के प्रयोग का वर्णन नही है | यहाँ हम  आपको अगरबत्ती जलाने से होने वाले नुक्सान से परिचित करवाएंगे |
शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने के नुकसान

अगरबत्ती  बनाने में बांस का प्रयोग किया जाता है और बांस को जलाया नही जाता | यह धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों रूप से सही नही है |  जिस बांस की लकड़ी का उपयोग हम चिता में जलाने के लिए भी नहीं कर सकते उसी बांस से बनी अगरबत्ती का उपयोग पूजा में करना निषेध माना गया है | कहा जाता है की यदि बांस की लकड़ी से चूल्हा जलाया गया तो वंश नष्ट होने से कोई रोक नहीं सकता | ऐसी मान्यता भी है कि बांस जलाने से भाग्य का नाश हो जाता है। बांस का होना भाग्यवर्धक है लेकिन उसे जलाने से दुर्भाग्य घटित होता है |

भगवान श्री कृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। शादी, जनेऊ, मुण्डन आदि में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है। अत: बांस को जलाना शुभ नहीं होता। ऐसा भी माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां बुरी आत्माएं नहीं आती हैं।


क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?

वैज्ञानिकों अनुसार बांस को जलाने से हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है | बांस को जलाना घातक होता है | बांस में लेड व हेवी मेटल बहुत अधिक मात्र में मौजूद रहता जिसको जलाने पर लेड आक्साइड बनाता है जो की सेहत के लिए बहोत ही भयंकर हानिकारक होता है | 

अगरबत्ती के जलाने से उत्पन्न हुई सुंगंध के प्रसार में फैथलिट् नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है, यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है, हमारे द्वारा साँस लेने से वो शरीर में प्रवेश करता है और जो सेहत के लिए बहोत हानिकारक होता है | इनकी थोड़ी मात्रा भी कैंसर व दिमाग  के आघात का कारण बनती है | और इसकी, हेप्टो टॉक्सिक की सिर्फ थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है ।

शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है , हर स्थान पर धूप, दीप, नैवेद्य का ही वर्णन है। 

अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है। इस्लाम मे ईश्वर की आराधना जीवंत स्वरूप में नही होती, परंतु हमारे यंहा होती है। मुस्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है, उनके यंहा ईश्वर का मूर्त रूप नही पूजा जाता। हम हमेशा अंधानुकरण ही करते है और अपने धर्म को कम आंकते है। जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानवमात्र के कल्याण के लिए ही बनी है। 

अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करें।

RADHEY KRISHNA

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