TODAY’S BRAJ RAS DHARA ON 04/09/2018



🍃🍁आज की “ब्रज रस धारा”🍁🍃
दिनांक 04/09/2018
श्री कृष्णदासजी की व्रजरज् में बहुत निष्ठा थी. कृष्णदास जी सदा ही उसे धारण किये रहते थे.एक बार इनके गुरुने इन्हें किसी कारण वश इन्हें त्याग दिया,एक बार ये दिल्ली गए वहाँ एक मिठाई वाला उत्तम गरम-गरम जलेबियाँ निकाल रहाथा.जलेबियाँ देखकर मन ही मन श्री नाथ जी को (मानसी) भोग लगाया.और प्रेम के ग्राहक श्री ठाकुर जी ने स्वीकार कर ली.
यहाँ श्री नाथ जी को बाहर का भोग नहीं लगता,जब गोसाई जी नेदेखा जलेबियो का थार कहाँ से आ गया, तो श्री नाथ जी से बोले – आप बड़े चटोरे हो जलेबियाँ खानी थी तो हमसे कहते हमने उसे त्याग दिया और आप जलेबियाँ खाने पहुँच गए.श्री नाथ जी बोले -आपगुरु हो अंगीकार भी कर सकते हो और त्याग भी कर सकते हो, किन्तु मै तो जीव को केवल अंगीकार करना ही जानता हूँ,और एक बार आपने उसका हाथ मेरे हाथ में दे दिया.आप छोड़ सकते हो मै नही छोड़ सकता.गुरु जी ठाकुर जी से लिपट कर रोने लगे,नाथ जब तुम नहीं छोड़ सकते तो हम कैसे छोड़ सकता हूँ.और फिर कृष्णदास जी को स्वीकार कर लिया.
प्रसंग 2 -एक बार एक वारमुखी का राग सुनकर कृष्णदास जी उसके पास गए और अनुराग वश उससे पूछने लगे -हे चन्द्र मुखी! मेरे शशि मुख लाला राग का बड़ा रसिक है तुम उसको राग गान सुनाने के लिए मेरे साथ चलोगी ?उसने सोचा होगा कोई रसिक मुझे क्या मेरा काम तो रिझाना है बोली -हाँ चलूंगी.कृष्णदास जी लोक की लज्जा छोड़कर उस वारमुखी को अपने साथ व्रज में लाए,उस वारमुखी को भली भांति स्नान करवा वसन भूषण पहना कर श्रृंगार करा सुगंध लगा उसे श्री नाथ जी के मंदिर में लाकर ठाकुर जी के सामने खड़ी कर आज्ञा की कि मनुष्यों को बहुत रिझाया अब तेरा भाग्य चमका हमारे लाल जी को रिझा.उस वारमुखी ने जैसे ही श्रीनाथ जी के दर्शन किया प्रेम में मतवाली होकर नाचने लगी.
कृष्णदास जी ने उससे पूँछा -मेरे लाल को तूने देखा है ?उसने उत्तर दिया -कि केवल देखा ही नहीं वरन इनकी सौंदर्य पर अपना तन मन भी वार चुकी.उसने गाया, नाचा, भाव बताया, अपनी सब कलाओं प्रकटकर ठाकुरजी को रिझा लिया.तदाकार हो गई, सबको प्रेमरंग में भीगा दिया. शरीर उसी दशा में छोड़कर परम पद को पहुँच गई.

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