प्रिय भगवद्जन


प्रिय भगवद्जन ....
         
श्रीराधा जी के लिये कहा गया है:-

देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता।
सर्वलक्ष्मीमयी सर्वकान्तिः सम्मोहिनी परा।।

श्रीकृष्ण की सेवारूपा क्रीड़ा की नित्य निवासस्थली होने के कारण या श्रीकृष्णनेत्रों को अनन्त आनन्द देने वाली द्युति से समन्वित परमा सुन्दरी होने के कारण श्रीराधा ‘देवी’ हैं। जहाँ-कहीं भी दृष्टि जाती है या राधा का मन जाता है, वहीं राधा जी को श्रीकृष्ण दिखते हैं। इनकी इन्द्रियाँ सदा-सर्वदा श्रीकृष्ण का संस्पर्श प्राप्त करती रहती हैं। अतः ये कृष्णमयी हैं।

श्रीकृष्ण की प्रत्येक इच्छापूर्ति करने के रूप में राधा जी तन, मन तथा वचन से उनकी आराधना में अपने को व्यस्त रखती हैं, अतः ये ‘राधिका’ हैं। सभी देव, ऋषि-मुनियों की पूजनीय, भगवान श्री कृष्ण से एकरूप होकर सभी का पालन-पोषण करने वाली और अनन्त ब्रह्माण्डों की जननी होने के कारण ‘श्रीराधा जी’ 'जगत्जननी' हैं।

श्रीकृष्ण की प्राणस्वरूपा मूलरूपा होने के कारण ये ‘सर्वलक्ष्मीमयी’ हैं। सर्वशोभासौन्दर्य की अनन्त खान, समस्त शोभाधिष्ठात्री देवियों की मूल उद्भवरूप एवं नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण जी की समस्त इच्छाओं की साक्षात मूर्ति होने के कारण ये ‘सर्वकान्ति’ हैं। श्रीश्यामसुन्दर की भी मनमोहिनी होने के कारण ये ‘सम्मोहिनी’ हैं तथा श्रीकृष्ण की परमाराध्या, परम प्रेयसी, पराशक्ति होने के कारण राधा जी ‘परा’ कही जाती हैं। इन्हीं पराशक्ति से शक्तिमान होकर श्रीकृष्ण सम्पूर्ण दिव्य लीलाओं को सम्पन्न करते रहते हैं:-

अनन्त गुण श्रीराधिकार पंचिस प्रधान।
सेइ गुणेर वश हय कृष्ण भगवान्।।

श्रीकृष्ण की ह्लादिनी शक्ति श्रीराधा रानी परम प्रियतम श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करती हुई जब किसी भाग्यवान जीव पर स्वयं अथवा अपनी सखी-सहचरी द्वारा कृपावर्षा करती हैं, तभी जीव विशुद्ध श्रीकृष्णप्रेम की ओर आकृष्ट होता है। जीवगत विकार मायाशक्ति के द्वारा जीव को सतत खींच रहा है और इसी से विषयों के सुख की आशा में नित्य दुःखों के भँवर में पड़ा जीव गोते खाता रहता है। इस मायाशक्ति के आकर्षण से मुक्त होने के लिये राधा या उनकी किसी सखी-सहचरी के अनुगत होकर उनसे प्रार्थना करनी चाहिये। जिससे श्रीराधा-माधव के विशुद्ध प्रेम की ओर वे हमें खींच सकें:-

अब बिलम्ब जनि करो लाडिली, कृपा दृष्टि टुक हेरो।
जमुन पुलिन गलिन गहवर की विचरूँ साँझ सेवेरो।।
निशि दिन निरखों जुगल माधुरि रसिकन ते भट मेरो।
ललितकिसोरी तन मन व्याकुल श्रीबन चहत बसेरो।।

ललित किशोरी जी ने इस प्रकार राधा जी से प्रार्थना की है। श्रीकृष्ण परम देव हैं। उनके छहों ऐश्वर्यों की मूलरूपा श्रीराधा उनकी सतत आराधना करती रहती हैं। वृन्दावन के एकमात्र स्वामी परमेश्वर श्रीकृष्ण हैं और श्रीराधा भी श्रीकृष्ण के द्वारा आराधिता हैं। श्रीराधा और श्रीकृष्ण एक ही शरीर हैं। लीला हेतु पृथक बन गये। श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण ईश्वरी हैं, सनातनी विद्या हैं। उनके प्राणों की अधिष्ठात्री हैं। एकान्त में चारों वेद उनकी स्तुति करते हैं। उनकी महिमा श्रीब्रह्मा भी वर्णित नहीं कर सकते। श्रुतियाँ राधा जी का इन अट्ठाइस नामों से स्तुतिगान करती हैं- 

राधा, रासेश्वरी, रम्या, कृष्णमन्त्राधिदेवता, सर्वाद्या, सर्ववन्द्या, वृन्दावनविहारिणी, वृन्दाराध्या, रमा, अशेषगोपीमण्डलपूजिता, सत्या, सत्यपरा, सत्यभामा, श्रीकृष्णवल्लभा, वृषभानुसुता, मूल प्रकृति, ईश्वरी, गन्धर्वा, राधिका, आरम्या, रुक्मिणि, परमेश्वरी, परात्परतरा, पूर्णा, पूर्णचन्द्रनिभानना, भुक्तिमुक्तिप्रदा और भवव्याधिविनाशिनी।

   श्रीराधा जी को इन नामों से भजने वाले मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाते हैं, वायु से भी पवित्र एवं वायु को पवित्र करने वाले तथा सब ओर पवित्र एवं सबको पवित्र करने वाले हो जाते हैं। वे राधा-कृष्ण के प्रिय हो जाते हैं। जहाँ-जहाँ उनकी दृष्टि पड़ती है, वहाँ तक वे सबको पवित्र कर देते हैं।

RADHEY KRISHNA 

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